बुधवार, 13 मई 2009
में तेयार नही हु
BUT I am ready to say "हाय भगवन ये मेरे साथ क्यों किया ?"
गुरुवार, 7 मई 2009
में इनका बेटा हु
हे माँ किस गुनाह की सजा है जो मुझे मिल रही है
में समझता हु की दुरी तुझे भी सता रही होगी
जो दर्द मुझे हो रहा है तुझे भी बता रही होगी
मैंने देखा है तुझे मेरे लिए रोते हुए जब में बीमार हुआ
मैंने जाना है तुझे दुआ मांगते हुए जब में लाचार हुआ
चल तो सकता नही था तुने ही गोद में उठा कर रखा
पेरों की ताकत के लिए मालिश कर मुझे खड़ा कर देखा
था में शरीर से कमजोर तो अपने शरीर से लगा कर रखा
न बोल पाता तो दिल की बात तुने ही तो सुनी थी
तोतली आवाज शायद पहली बार तेरे कान में दी थी
हाथ पकड़ कर तुने ही अ आ लिखना बताया
स्कूल जाने से डरता था ये डर तुने ही हटाया
हाथ जोड़ कर टीचर कहा था मत कुछ कहना ये कमजोर है
ये भी कहा था की दीखता आम है पर ये कुछ और है
कदम कदम पर तुने मुझे थमने की कोशिश की है
मौत के मुह से वापिस लाने वाली भी तू ही है
हे जीवन दायीनी तुझे कोटि कोटि प्रणाम
में समझता हु की तेरी दुरी शरीर से है दिल से नही
चाहे दुनिया की मजबुरिया हमें दूर रखे पर दिल तो दुनिया से अलग है
जब भी मेरा वक्त आएगा माँ में तुझे मिल जाऊंगा
तब बतलाऊंगा की माँ तेरे बिना में कितना अधुरा था
तेरे आर्शीवाद से में कुछ बन जाऊँगा तब में दुनिया को ये बतलाऊंगा की
कोई जब कहेगा की ये उनकी माँ है तब में कहूँगा की में इनका बेटा हु
शनिवार, 18 अप्रैल 2009
me कहा hu
एक मुलाकात हो गयी फ़रिश्ते से अचानक जब me leta था aankhe band किए हुए अपने अतीत me चला गया चलता गया चलता गया ३० वर्ष २५ वर्ष २० वर्ष १५ वर्ष ५ वर्ष ० वर्ष का हुआ और ekdam चला गया ma के गर्भ me और piche मेरे agaman के purv विचार विमर्श चल रहा था उस फ़रिश्ते और मेरे बीच की duniya me जाना है परन्तु शायद me mana कर रहा था नही muze नही जाना है pahle भी me ja कर आया hu और ऊपर से duniya देख रहा hu कुछ भी नही है सिर्फ़ swarth ही swarth नजर आता है to फ़रिश्ते ने कहा नही अब to भारत aazad हो चुका है भारत badal चुका है अब भारत का dusra रूप होगा suchna takneek की क्रांति aachuki होगी पैसा ही पैसा होगा सब trupt hoge सभी aazadi से jiyenge जब insan की jarurate पुरी होने lagegi to कहे का lafda हो सकता है जब तुम pahle इस dunia me गए थे tab की बात और थी अब to और होगी jao हमने tumhara जन्म sthan समय सब कुछ तय कर दिया है केवल तुम्हारी han की देर है ऐसा ही कुछ फ़रिश्ते ने कहा और फिर एक बार मैंने bharosa करना उचित samza परन्तु कुछ डर to मन me था to meine फ़रिश्ते से कहा चलो आपकी बात मान लेते है पर जो तुम कह रहे हो किस विश्वास से tab उसने अपना leptop खोला power point को on किया और presentation देना चालू कर दिया सभी से dur केवल me अकेला और vo presentation इतना decorative था की meine turant हा कर दी की चलो पिछले janma के दुःख भी भूल जायेंगे
मेरा padarpan हुआ इस duniya me आया ma के garbha me darta sahmta पर खुशी खुशी , कुछ दिन बीते दिन bitate गए ahsas to होने लगा की भाई कही न कही gadbad है कुछ देख to नही सकते थे सिर्फ़ mahsus कर सकते थे इस duniya को vahi swarth की bate vohi jhagde अपने apno me ऐसा कुछ mahsus हो रहा था हमने भी sampark किया फ़रिश्ते से की भाई tumhara प्रोजेक्ट देख कर to आने की सोच रहा hu पर कुछ gadbad लग रही है उसने कहा fikra न करो यह सब tumhara vaham है kher अब आने का सोच ही लिया है to चलो इसी uah poh me कब no mah बीत गए पता न चला
निरंतर ...........................................
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
पता न चला
सोची हुई खास जिन्दगी आम हो गयी पता न चला
करना तो चाहते थे बहुत कुछ, परिस्तिथी से समझोता करना पड़ा
लड़े परिस्तिथियों से बहुत, पर हरे हम ही हमसे जमाना लड़ा
इस लडाई में कब हमने मात खा ली पता न चला .......
जब तक है होसला हर न मानेगे हम ये तो ठाना है हमने भी
कही न कही तो जीत होगी हमारी भी ये तो जाना है हमने भी
यह तो ख़बर रखते है हम की हरे हुए है तो क्या खता भला .........
एक मोका तो सभी को मिलता है इतना तो विश्वास है हमें
चाहे वो मौका मौत के एक क्षण पहले मिले हमें
इंतजार है उस मौके का फेला देंगे हम भी जलजला .........
बुधवार, 4 मार्च 2009
इस देश की बात अलग है
घने जंगल में बना एक मंदिर उसमें मौजूद एक पुजारी। लेकिन ये कहानी इस पुजारी की नहीं उसके एक अदद वोट की है। आप यकीन करें या न करें मगर ये वोटर अनोखा है। इस वोटर के लिए चुनाव आयोग एक अलग पोलिंग बूथ बनाया है। अलग पोलिंग बूथ इसलिए कि इस इलाके में वो अकेल वोटर हैं। इस घने जंगल में एक ही मतदाता है।
बनेज के जंगल में मौजूद इस मंदिर को शिव बाण गंगा तीर्थ कहते हैं। इस मंदिर के पुजारी भरत गुरदर्शन दास हैं। गुरदर्शन दास की उम्र के 58 साल बीत गए हैं। गुरदर्शन दास सालों से इस मंदिर की सेवा में लगे हैं।
इस बीच इनका वोटर आई कार्ड भी बन गया। वोटर आईडी कार्ड नंबर है GL G 2359875 और मकान नंबर-एक। लेकिन वोटर तो वोटर है उसके लिए पोलिंग बूथ तो बनेगा ही। भारत विविधताओं का देश है और ये हकीकत भी है।
लेकिन गुरूर्दशन दास का मामला तो सबसे अलग है जो ये साबित करने को काफी है कि हमारी डेमोक्रेसी का रंग भी अनोखा है।
इस पुरी ख़बर वाकई मजेदार है और साथ ही हमें गर्व होना चाहिए हमारी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर या आश्चर्य भी होना चाहिए क्योकि प्रशाशन चाहता तो जितने कर्मचारी जाने वाले है उस बूथ पर जितना खर्चा होना है उससे कई गुना कम खर्च पर वोटर से वोट लिया जा सकता था आपके क्या विचार है
सोमवार, 2 मार्च 2009
वापिस आओगे क्या
कई दिनों के बाद रोने की इच्छा हो रही है पर आंसू आने को तेयार नही है ,
कहते है तुम्हारी आँखों में महफूज हूँ ये दुनिया मजेदार नही है
क्या हँसे हसने पर लगने लगा है डर, हँसेगे तो भी लग जायेगी नजर
हमें तो अपनी नही मालूम पर पुरी दुनिया को है मेरी ख़बर
तारीफ़ करते है दुनिया वाले ये सिर्फ़ स्वार्थ है कोई प्यार नही है
कहते है की मेहनत से किस्मत बदली जा सकती है पर किस्मत ने मेहनत को बदल दिया
मेहनत तो हमने बहुत की पर इसका मजा तो दुनिया वालो ने ले लिया
शायद हमारी किस्मत को हमारी मेहनत स्वीकार नही है
होने लगा है हमें आब शक ऊपर वाले भी की वो मजा ले रहा है हमारा ,
दोड़ और नाच जैसा हम कहे वरना आना पड़ेगा दोबारा
बहुत हो गया है अब पुनः आने का विचार नही है
क्या हम भागना छोड़ दे या भागते रहे ?
ऊपर वाले की माया ही अजब गजब है उसकी पढ़ाई और परीक्षा साथ साथ चलती रहती है आप परीक्षा देते रहो पास हो तो भी सबक है और फ़ैल हो तो भी सबक है ठहराव तो है ही नही ठहर गए तो बिखर गए आख़िर क्यो ? पुनः वही बात आती है की बचपन में हम किसी पहाड़ के ऊपर से घने जंगल को देखते है तो वो कितना खुबसूरत दीखता है और जैसे जैसे उस जंगल में जाते है तो जंगल घाना डरावना उलज़ंन भरा जहा कोई अंत नही लगता है एक समय ऐसा आता है की न तो हम वापस जा सकते है और आगे जाने की इच्छा ही नही होती है आने वाला कल लगता है की और परेशानी वाला होगा और कही सूरज की एक किरण हमें नजर आती है तो हम जोश में भर जाते है और एक कदम और आगे बढ़ते है की फिर दुःख बढ़ जाते है हजारो लाखो की भीड़ में एक्का दुक्का सफल नजर आते है बाकी सब चूहा दौड़ में लगे हुए है जिसका कोई अंत नही है
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
अन्तिम समय की क्या कहानी है ?
क्या हम यह कह दे सत्य परेशां हो सकता है परन्तु पराजीत नही लेकिन रोज रोज अपने आप को मारता रहता है
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
सुबह होती है शाम होती है जिन्दगी यु ही तमाम होती है
कुल मिलकर ये जिन्दगी बहुत ही कठिन निरंतर जा रही है पल पल हमें जीना है तो हर वक्त को एन्जॉय करना होगा
हम अपनी जिन्दगी के मालिक नही रहे अपने व्यापार व्यवसाय नोकरी धंदे में इतने सिमट चुके है की हमेशा डर डर कर जी रहे है नोकरी वाले अपने बॉस से डर रहे है व्यापार वाले अपने ग्राहक से डर रहे है प्रोफेसनल अपने प्रोफेशन से डरते है की में नही तो मेरा काम नही आखिर क्यो ? क्या हम इसी के लिए पैदा हुए है जिसकी बात मानना चाहिए उसकी बात नही मान रहे है और जिसके कई विकल्प है वहा हम डर रहे है मेरे कहने का तात्पर्य है अपने माँ बाप भाई बीवी बच्चे इनकी नही सुनते और बॉस की सुनना पड़ती है ग्राहक से बड़ी विनम्रता से बात करते है क्योकि वो चला गया तो और बीवी से? (अगर वो चली गयी तो ) ये तो हमारे संस्कार इतने अच्छे है की ऐसा नही होता पर शायद कही गड़बड़ है इन संस्कारो में, विदेशो में इसी डर से परिवार के साथ एन्जॉय तो होता है
निरंतर .............
गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009
सुभाह होती है शाम होती है जिन्दगी यु ही तमाम होती है
जब जिंदगी को देखा था बहुत आसन नोर्मल सरल दादाजी दादीजी को जो भी चीज मांगते तुंरत हाजिर हो जाती थी लगता था की बड़े होने के बाद मजे हो जायेंगे jindagi aasaan हो जायेगी जैसे जैसे वक्ता निकलता गया सफर और भी मुश्किल होता गया नही था आसान सफर जिन्दगी का कुल मिला कर सिर्फ़ और सिर्फ़ कॉम्पिटिशन होड़ नजाने क्या क्या इसकी साडी मेरी साडी से सफ़ेद केसे ? संतुष्टि तो बिल्कुल ही खत्म हो गयी है जीवन की दोड़ में हम भागते जा रहे है पर कोई मंजिल निर्धारित नही होती है हम अपना परिवार स्वास्थ सबकुछ भूलते जा रहे है जिनसे हम प्यार करते है जिनके लिए हम दोड़ते है उन्ही से दूर हो रहे है चाहे वो हमारा परिवार हो या हमारी सेहत बिल्कुल भी नही सोचते सिर्फ़ और सिर्फ़ चूहा दोड़ है ये में इसे लिख रहा hu और जब आप इसे पढ़ रहे होंगे तो सोचेंगे की ये सुब फालतू की बातें है में कोई साहित्यकार नही हु न ही मेरे पास शब्दों का भंडार है जो बात है उसे सीधे सरल शब्दों में कहने की कोशिश कर रहा हु शायद आपको लगे पर मेरे कहने का तात्पर्य समज़ ले तो आप भी सोचने के लिए मजबूर हो जायेंगे सोचे की १०० प्रतिशत मात्र ५ मिनिट के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने लिए कब समय निकला था ? मात्र १० मिनिट के लिए अपने परिवार के लिए कब सोचा था वोह भी १०० प्रतिशत जब दिमाग में कोई उधेड़बुन नही चल रही हो
कुल मिलकर ये जिन्दगी बहुत ही कठिन निरंतर जा रही है पल पल हमें जीना है तो हर वक्त को एन्जॉय करना होगा
nirantar ........
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
जीवन है क्या
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये । अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो..मैंने अभी-अभी यही किया है
बुधवार, 28 जनवरी 2009
सफलता की क्या परिभाषा है|
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
यह सोचने का समय है
धन्यवाद्
रविवार, 25 जनवरी 2009
इसी का नाम जिन्दगी hai
हम अपने नित्य कार्यो में इतने व्यस्त हो जाते है कि हम अपने बारे में सोच ही नही पाते है और जब आकलन का समय आता है तब तक समय निकल चुका होता है मेरा यह ब्लॉग अभी शुरुआती दौर में है पर मै यह दावे के साथ कह सकता हू की इसकी गहरे में बहुत ही आनंद आने वाला है
धन्यवाद्
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई
यह सोचने का समय है
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
यह सोचने का समय है|
कुछ प्रश्न है जो आज के लिए है कल हम कुछ और चर्चा करेंगे
धन्यवाद