मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

पता न चला

कब सुबह से दोपहर और शाम हो गयी पता न चला
सोची हुई खास जिन्दगी आम हो गयी पता न चला
करना तो चाहते थे बहुत कुछ, परिस्तिथी से समझोता करना पड़ा
लड़े परिस्तिथियों से बहुत, पर हरे हम ही हमसे जमाना लड़ा
इस लडाई में कब हमने मात खा ली पता न चला .......
जब तक है होसला हर न मानेगे हम ये तो ठाना है हमने भी
कही न कही तो जीत होगी हमारी भी ये तो जाना है हमने भी
यह तो ख़बर रखते है हम की हरे हुए है तो क्या खता भला .........
एक मोका तो सभी को मिलता है इतना तो विश्वास है हमें
चाहे वो मौका मौत के एक क्षण पहले मिले हमें
इंतजार है उस मौके का फेला देंगे हम भी जलजला .........

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