शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

सुबह होती है शाम होती है जिन्दगी यु ही तमाम होती है

आगे से ......
कुल मिलकर ये जिन्दगी बहुत ही कठिन निरंतर जा रही है पल पल हमें जीना है तो हर वक्त को एन्जॉय करना होगा
हम अपनी जिन्दगी के मालिक नही रहे अपने व्यापार व्यवसाय नोकरी धंदे में इतने सिमट चुके है की हमेशा डर डर कर जी रहे है नोकरी वाले अपने बॉस से डर रहे है व्यापार वाले अपने ग्राहक से डर रहे है प्रोफेसनल अपने प्रोफेशन से डरते है की में नही तो मेरा काम नही आखिर क्यो ? क्या हम इसी के लिए पैदा हुए है जिसकी बात मानना चाहिए उसकी बात नही मान रहे है और जिसके कई विकल्प है वहा हम डर रहे है मेरे कहने का तात्पर्य है अपने माँ बाप भाई बीवी बच्चे इनकी नही सुनते और बॉस की सुनना पड़ती है ग्राहक से बड़ी विनम्रता से बात करते है क्योकि वो चला गया तो और बीवी से? (अगर वो चली गयी तो ) ये तो हमारे संस्कार इतने अच्छे है की ऐसा नही होता पर शायद कही गड़बड़ है इन संस्कारो में, विदेशो में इसी डर से परिवार के साथ एन्जॉय तो होता है
निरंतर .............

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