आज सुबह सुबह एक जोरदार SMS प्राप्त हुआ की १ से लेकर ९९९ तक "ए" किसी भी स्पेलिंग में नही आता है वही १००० की स्पेलिंग में आ जाता है वाकई मजेदार लगा क्यो की वर्णमाला का पहला अक्षर को लाने नौ सो निन्यानवे तक प्रयास करना पड़ेगा तब जाकर ए अक्षर आएगा घोर आश्चर्य की बात है क्या यही बात हमारे निजी जीवन के काम काज में तो लागु नही होती है हम जिसके पीछे भागते है वो हमें प्राप्त नही होता है जैसे पैसा है न सच ? क्यो की यहाँ तो हमें मालुम है की ९९९ तक की स्पेलिंग में "ए" नही आने वाला है उसके बाद ही आएगा परन्तु हमारे पैसे कमाने के मामले में हम यहाँ धोखा खा जाते है और हमें यहाँ मालुम तो होता नही है की कौनसा प्रयास हमारा अन्तिम प्रयास है उसके बाद हमें सफलता मिलने लगेगी और हम दोड़ते रहते है तब तक जब तक हम मायूस न हो जाए या थक न जाए, हम वही पर रुक जाते है वो हमारा हो सकता है नौ सो निन्यानवे वाला प्रयास हो परन्तु हम हार स्वीकार कर लेते है इसका कोई उपाय नही है क्या ? कोई काम जो हम करते है उसमे हम सहज रूप से हम सफल नही हो पाते वही दूसरा बड़ी आसानी से सफल हो जाता है ऐसा कोई पैमाना नही है जिसमे हमें यह ज्ञात हो जाये की हमारा प्रयास अब अन्तिम चरण में है
ऊपर वाले की माया ही अजब गजब है उसकी पढ़ाई और परीक्षा साथ साथ चलती रहती है आप परीक्षा देते रहो पास हो तो भी सबक है और फ़ैल हो तो भी सबक है ठहराव तो है ही नही ठहर गए तो बिखर गए आख़िर क्यो ? पुनः वही बात आती है की बचपन में हम किसी पहाड़ के ऊपर से घने जंगल को देखते है तो वो कितना खुबसूरत दीखता है और जैसे जैसे उस जंगल में जाते है तो जंगल घाना डरावना उलज़ंन भरा जहा कोई अंत नही लगता है एक समय ऐसा आता है की न तो हम वापस जा सकते है और आगे जाने की इच्छा ही नही होती है आने वाला कल लगता है की और परेशानी वाला होगा और कही सूरज की एक किरण हमें नजर आती है तो हम जोश में भर जाते है और एक कदम और आगे बढ़ते है की फिर दुःख बढ़ जाते है हजारो लाखो की भीड़ में एक्का दुक्का सफल नजर आते है बाकी सब चूहा दौड़ में लगे हुए है जिसका कोई अंत नही है
सोमवार, 2 मार्च 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें