जूनागड़। गुजरात के जूनागड़ में एक ऐसा शख्स है जो इलाके में अकेला वोटर है। जिसके लिए चुनाव आयोग ने एक अलग बूथ का इंतजाम किया है।
घने जंगल में बना एक मंदिर उसमें मौजूद एक पुजारी। लेकिन ये कहानी इस पुजारी की नहीं उसके एक अदद वोट की है। आप यकीन करें या न करें मगर ये वोटर अनोखा है। इस वोटर के लिए चुनाव आयोग एक अलग पोलिंग बूथ बनाया है। अलग पोलिंग बूथ इसलिए कि इस इलाके में वो अकेल वोटर हैं। इस घने जंगल में एक ही मतदाता है।
बनेज के जंगल में मौजूद इस मंदिर को शिव बाण गंगा तीर्थ कहते हैं। इस मंदिर के पुजारी भरत गुरदर्शन दास हैं। गुरदर्शन दास की उम्र के 58 साल बीत गए हैं। गुरदर्शन दास सालों से इस मंदिर की सेवा में लगे हैं।
इस बीच इनका वोटर आई कार्ड भी बन गया। वोटर आईडी कार्ड नंबर है GL G 2359875 और मकान नंबर-एक। लेकिन वोटर तो वोटर है उसके लिए पोलिंग बूथ तो बनेगा ही। भारत विविधताओं का देश है और ये हकीकत भी है।
लेकिन गुरूर्दशन दास का मामला तो सबसे अलग है जो ये साबित करने को काफी है कि हमारी डेमोक्रेसी का रंग भी अनोखा है।
इस पुरी ख़बर वाकई मजेदार है और साथ ही हमें गर्व होना चाहिए हमारी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर या आश्चर्य भी होना चाहिए क्योकि प्रशाशन चाहता तो जितने कर्मचारी जाने वाले है उस बूथ पर जितना खर्चा होना है उससे कई गुना कम खर्च पर वोटर से वोट लिया जा सकता था आपके क्या विचार है
बुधवार, 4 मार्च 2009
सोमवार, 2 मार्च 2009
वापिस आओगे क्या
कई दिनों के बाद रोने की इच्छा हो रही है पर आंसू आने को तेयार नही है ,
कहते है तुम्हारी आँखों में महफूज हूँ ये दुनिया मजेदार नही है
क्या हँसे हसने पर लगने लगा है डर, हँसेगे तो भी लग जायेगी नजर
हमें तो अपनी नही मालूम पर पुरी दुनिया को है मेरी ख़बर
तारीफ़ करते है दुनिया वाले ये सिर्फ़ स्वार्थ है कोई प्यार नही है
कहते है की मेहनत से किस्मत बदली जा सकती है पर किस्मत ने मेहनत को बदल दिया
मेहनत तो हमने बहुत की पर इसका मजा तो दुनिया वालो ने ले लिया
शायद हमारी किस्मत को हमारी मेहनत स्वीकार नही है
होने लगा है हमें आब शक ऊपर वाले भी की वो मजा ले रहा है हमारा ,
दोड़ और नाच जैसा हम कहे वरना आना पड़ेगा दोबारा
बहुत हो गया है अब पुनः आने का विचार नही है
क्या हम भागना छोड़ दे या भागते रहे ?
आज सुबह सुबह एक जोरदार SMS प्राप्त हुआ की १ से लेकर ९९९ तक "ए" किसी भी स्पेलिंग में नही आता है वही १००० की स्पेलिंग में आ जाता है वाकई मजेदार लगा क्यो की वर्णमाला का पहला अक्षर को लाने नौ सो निन्यानवे तक प्रयास करना पड़ेगा तब जाकर ए अक्षर आएगा घोर आश्चर्य की बात है क्या यही बात हमारे निजी जीवन के काम काज में तो लागु नही होती है हम जिसके पीछे भागते है वो हमें प्राप्त नही होता है जैसे पैसा है न सच ? क्यो की यहाँ तो हमें मालुम है की ९९९ तक की स्पेलिंग में "ए" नही आने वाला है उसके बाद ही आएगा परन्तु हमारे पैसे कमाने के मामले में हम यहाँ धोखा खा जाते है और हमें यहाँ मालुम तो होता नही है की कौनसा प्रयास हमारा अन्तिम प्रयास है उसके बाद हमें सफलता मिलने लगेगी और हम दोड़ते रहते है तब तक जब तक हम मायूस न हो जाए या थक न जाए, हम वही पर रुक जाते है वो हमारा हो सकता है नौ सो निन्यानवे वाला प्रयास हो परन्तु हम हार स्वीकार कर लेते है इसका कोई उपाय नही है क्या ? कोई काम जो हम करते है उसमे हम सहज रूप से हम सफल नही हो पाते वही दूसरा बड़ी आसानी से सफल हो जाता है ऐसा कोई पैमाना नही है जिसमे हमें यह ज्ञात हो जाये की हमारा प्रयास अब अन्तिम चरण में है
ऊपर वाले की माया ही अजब गजब है उसकी पढ़ाई और परीक्षा साथ साथ चलती रहती है आप परीक्षा देते रहो पास हो तो भी सबक है और फ़ैल हो तो भी सबक है ठहराव तो है ही नही ठहर गए तो बिखर गए आख़िर क्यो ? पुनः वही बात आती है की बचपन में हम किसी पहाड़ के ऊपर से घने जंगल को देखते है तो वो कितना खुबसूरत दीखता है और जैसे जैसे उस जंगल में जाते है तो जंगल घाना डरावना उलज़ंन भरा जहा कोई अंत नही लगता है एक समय ऐसा आता है की न तो हम वापस जा सकते है और आगे जाने की इच्छा ही नही होती है आने वाला कल लगता है की और परेशानी वाला होगा और कही सूरज की एक किरण हमें नजर आती है तो हम जोश में भर जाते है और एक कदम और आगे बढ़ते है की फिर दुःख बढ़ जाते है हजारो लाखो की भीड़ में एक्का दुक्का सफल नजर आते है बाकी सब चूहा दौड़ में लगे हुए है जिसका कोई अंत नही है
ऊपर वाले की माया ही अजब गजब है उसकी पढ़ाई और परीक्षा साथ साथ चलती रहती है आप परीक्षा देते रहो पास हो तो भी सबक है और फ़ैल हो तो भी सबक है ठहराव तो है ही नही ठहर गए तो बिखर गए आख़िर क्यो ? पुनः वही बात आती है की बचपन में हम किसी पहाड़ के ऊपर से घने जंगल को देखते है तो वो कितना खुबसूरत दीखता है और जैसे जैसे उस जंगल में जाते है तो जंगल घाना डरावना उलज़ंन भरा जहा कोई अंत नही लगता है एक समय ऐसा आता है की न तो हम वापस जा सकते है और आगे जाने की इच्छा ही नही होती है आने वाला कल लगता है की और परेशानी वाला होगा और कही सूरज की एक किरण हमें नजर आती है तो हम जोश में भर जाते है और एक कदम और आगे बढ़ते है की फिर दुःख बढ़ जाते है हजारो लाखो की भीड़ में एक्का दुक्का सफल नजर आते है बाकी सब चूहा दौड़ में लगे हुए है जिसका कोई अंत नही है
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