गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

अन्तिम समय की क्या कहानी है ?

पिछले दो दिनों से सोच रहा हूँ की अच्छाई का अंत कैसा होता है , या कहते है की सत्य परेशां होता है परन्तु पराजित नही तो क्या सत्य की वाकई में जीत होती है ? हम थोड़े पीछे जाते है रामराज की और रावन ने बहुत पाप किए न जाने कितने को सताया और आख़िर में जंग में भगवन के हाथो मृत्यु को प्राप्त हुआ माँ सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा तो राम स्वयम को वनवास भोगना पड़ा और पत्नी से विरह भुगतना पड़ा, हम आते है द्वापर युग में वहा भी यही कहानी है कंस ने कितने ही पाप किए परन्तु मुक्ति प्रभु के हाथो तुंरत मिल गयी कोई pareshani नही हुई, कृष्ण को भी कम परेशानी नही हुई वाही प्रभु इशु को क्रॉस नसीब हुआ किसी भी महान व्यक्तिव की चर्चा करे उसका अंत या जीवन परेशानी वाला होता है वाही किसी भी बुरे आदमी का अंत तुंरत हो जाता है चाहे आज भी खतरनाक अपराधी का एनकाउंटर हो जाता है बेचारा सीधा प्राणी रोज रोज मरता है में फिर कहरहा हु की मेरा ज्ञान काफी कम है परन्तु जेहन में कोई सवाल आता है तो लिख लेना उचित समजता हूँ और कुछ सवाल छोड़ने की कोशिश करता हूँ
क्या हम यह कह दे सत्य परेशां हो सकता है परन्तु पराजीत नही लेकिन रोज रोज अपने आप को मारता रहता है

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

सुबह होती है शाम होती है जिन्दगी यु ही तमाम होती है

आगे से ......
कुल मिलकर ये जिन्दगी बहुत ही कठिन निरंतर जा रही है पल पल हमें जीना है तो हर वक्त को एन्जॉय करना होगा
हम अपनी जिन्दगी के मालिक नही रहे अपने व्यापार व्यवसाय नोकरी धंदे में इतने सिमट चुके है की हमेशा डर डर कर जी रहे है नोकरी वाले अपने बॉस से डर रहे है व्यापार वाले अपने ग्राहक से डर रहे है प्रोफेसनल अपने प्रोफेशन से डरते है की में नही तो मेरा काम नही आखिर क्यो ? क्या हम इसी के लिए पैदा हुए है जिसकी बात मानना चाहिए उसकी बात नही मान रहे है और जिसके कई विकल्प है वहा हम डर रहे है मेरे कहने का तात्पर्य है अपने माँ बाप भाई बीवी बच्चे इनकी नही सुनते और बॉस की सुनना पड़ती है ग्राहक से बड़ी विनम्रता से बात करते है क्योकि वो चला गया तो और बीवी से? (अगर वो चली गयी तो ) ये तो हमारे संस्कार इतने अच्छे है की ऐसा नही होता पर शायद कही गड़बड़ है इन संस्कारो में, विदेशो में इसी डर से परिवार के साथ एन्जॉय तो होता है
निरंतर .............

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

सुभाह होती है शाम होती है जिन्दगी यु ही तमाम होती है

जब जिंदगी को देखा था बहुत आसन नोर्मल सरल दादाजी दादीजी को जो भी चीज मांगते तुंरत हाजिर हो जाती थी लगता था की बड़े होने के बाद मजे हो जायेंगे jindagi aasaan हो जायेगी जैसे जैसे वक्ता निकलता गया सफर और भी मुश्किल होता गया नही था आसान सफर जिन्दगी का कुल मिला कर सिर्फ़ और सिर्फ़ कॉम्पिटिशन होड़ नजाने क्या क्या इसकी साडी मेरी साडी से सफ़ेद केसे ? संतुष्टि तो बिल्कुल ही खत्म हो गयी है जीवन की दोड़ में हम भागते जा रहे है पर कोई मंजिल निर्धारित नही होती है हम अपना परिवार स्वास्थ सबकुछ भूलते जा रहे है जिनसे हम प्यार करते है जिनके लिए हम दोड़ते है उन्ही से दूर हो रहे है चाहे वो हमारा परिवार हो या हमारी सेहत बिल्कुल भी नही सोचते सिर्फ़ और सिर्फ़ चूहा दोड़ है ये में इसे लिख रहा hu और जब आप इसे पढ़ रहे होंगे तो सोचेंगे की ये सुब फालतू की बातें है में कोई साहित्यकार नही हु न ही मेरे पास शब्दों का भंडार है जो बात है उसे सीधे सरल शब्दों में कहने की कोशिश कर रहा हु शायद आपको लगे पर मेरे कहने का तात्पर्य समज़ ले तो आप भी सोचने के लिए मजबूर हो जायेंगे सोचे की १०० प्रतिशत मात्र ५ मिनिट के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने लिए कब समय निकला था ? मात्र १० मिनिट के लिए अपने परिवार के लिए कब सोचा था वोह भी १०० प्रतिशत जब दिमाग में कोई उधेड़बुन नही चल रही हो


कुल मिलकर ये जिन्दगी बहुत ही कठिन निरंतर जा रही है पल पल हमें जीना है तो हर वक्त को एन्जॉय करना होगा

nirantar ........

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009






भगवान् के इस गीत में मनोरंजन के साथ एक संदेश भी दिया है जो वाकई में कबीले तारीफ है सब कुछ कह देता है आज की हकीकत।


गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

जीवन है क्या

काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये । अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो..मैंने अभी-अभी यही किया है